rajendar prasad ka janm

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Biography Of Rajendra Prasad In Hindi डॉ .राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन परिचय

डॉ .राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन परिचय सन( 1884-1963)   डॉ .राजेंद्र प्रसाद जी का जीवन परिचय     डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था । माता कमलेश्वरी देवी एक गृहणी थी। राजेन्द्र प्रसाद अपने भाई–बहनों में सबसे छोटे थे। राजेंद्र प्रसाद जी के पिता महादेव सहाय जी फारसी और संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे। राजेंद्र प्रसाद जी को अपनी माता तथा बड़े भाई महेंद्र से काफी लगाव रहता था। महज 5 वर्ष की आयु सन 1889 में राजेंद्र प्रसाद को उनके समुदाय की एक प्रथा के अनुसार उन्हें एक मौलवी को सौंप दिया गया ,उस मौलवी ही ने उन्हें फ़ारसी सिखाई। बाद में उन्हें हिंदी और अंकगणित सिखाई गयी। मात्र 12 साल की उम्र (सन 1896) में  प्रसाद जी का विवाह राजवंशी देवी से हो गया था।    प्रसाद जी की शिक्षा : राजेंद्र प्रसाद एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, और उन्हें 30 रूपए महीने छात्रवृत्ति दिया गया। 18 वर्ष की उम्र (सन 1902) में उन्होंने प्रसिद्ध कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया जहा से इन्होंने स्नातक की पढाई पूरा किया। यहाँ उनके शिक्षकों में महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस और माननीय प्रफुल्ल चन्द्र रॉय शामिल थे। इसी बीच, वर्ष 1905 में अपने बड़े भाई महेंद्र के कहने पर राजेंद्र प्रसाद स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए। वह सतीश चन्द्र मुख़र्जी और बहन निवेदिता द्वारा संचालित ‘डॉन सोसाइटी’ से भी जुड़े। 1907 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता से इकोनॉमिक्स में एम् ए किया। 31साल की उम्र (सन 1915) में कानून में मास्टर की डिग्री पूरी किया,जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेंडल से सम्मानित किया गया।इसके बाद उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त किया। बाद में पटना आकर वकालत करने लगे ।    राजनैतिक जीवन एवं कार्य: भारतीय राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को काफी प्रभावित किया। जब गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में तथ्य खोजने के मिशन पर थे ,तब उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने के लिए कहा गया । गांधीजी ने जो समर्पण, विश्वास और साहस का प्रदर्शन किया, उससे डॉ. राजेंद्र प्रसाद काफी प्रभावित हुए। गांधीजी के प्रभाव से डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नजरिया ही बदल गया। उन्होंने अपने जीवन को सरल बनाने के लिए अपने सेवकों की संख्या कम कर दिया।सेवको को कम करने की वजह से उन्होंने अपने दैनिक कामकाज जैसे झाड़ू लगाना, बर्तन साफ़ करना खुद शुरू कर दिया । गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह से घुल –मिल  गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 46 वर्ष की उम्र ( सन1930 )में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में एक विनाशकारी भूकम्प आया तब वह जेल में थे। जेल से छूटने  के दो दिन बाद ही राजेंद्र प्रसाद धन–दौलत जुटाने और राहत के कार्यों में लग गए। वायसराय के तरफ से भी इस आपदा के लिए धन एकत्रित किया गया । राजेंद्र प्रसाद ने अकेले ही तीस लाख अस्सी हजार रुपये धन जुटा लिया था, और वायसराय इस राशि का केवल एक तिहाई हिस्सा ही जुटा पाये थे। राहत का कार्य जिस तरह से व्यवस्थित किया गया था, उसने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कौशल को साबित किया। इसके तुरंत बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुना गया। उन्हें 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया।   हमारे प्रथम राष्ट्रपति...