मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय(सन 1880-1936)
मुंशी प्रेमचंद्र जी का जन्म 31 जुलाई सन 1880 ई० को वाराणसी जिले के लामुही नामक ग्राम में हुआ था। हिंदी और उर्दू दोनों विषयो के महान लेखक के साथ ये एक अध्यापक और पत्रकार भी थे.
मुंशी प्रेमचंद्र जी के बचपन का नाम धनपत रॉय श्रीवास्तव था.इनके दादा जी का नाम गुरुसहाय राय था,जो एक पटवारी थे. इनके पिता का नाम अजॉयबराय था,तथा माता का नाम आनंदी देवी था. इनके पिता अजॉयबराय जी लामुही में डाक मुंशी थे.
![]() |
Munsi Premchandra Jeevan Parichay |
इनका बचपन बहुत ही संघर्षो से गुजरा जब ये सात वर्ष के थे तब इनकी माता का निधन हो गया. माता जी के देहांत हो जाने के बाद इनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया,जिससे प्रेमचंद्र जी की स्थिति बहुत ही ज्यादा ख़राब हो गयी,इनकी सौतेली माँ इनको मानती नहीं थी.
मुंशी प्रेमचंद्र जी की शिक्षा
इनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फ़ारसी विषयो से लामुही गांव के एक छोटे से मदरसे से हुआ. इनका पढाई में ज्यादा मन लगता था. प्रेमचंद्र जी दिनभर छोटे-छोटे उपन्यास तथा कहानियो को पढ़ा करते थे।प्रेमचंद्र जी बहुत सरल स्वाभाव के थे, इनको ईश्वर पर भरोसा था.आर्थिक तंगी के कारण ये BA तक की ही पढाई कर सके.
वैवाहिक जीवन
प्रेमचंद्र जी का विवाह उन दिनों के परंपरा के अनुसार 15 साल की उम्र में ही हो गया था. इनका वैवाहिक जीवन ज्यादा दिन तक न चल सका . घर की स्थिति ख़राब होने के कारण इनकी पंत्नी इन्हें छोड़ कर मायके चली गयी, और कभी वापस नहीं आयी. इसके बाद इन्होंने अपनी दूसरी शादी शिवरानी देवी से किया जो एक विधवा औरत थी,उनकी तीन संताने हुई.
साहित्यिक परिचय-
मैट्रिक के पढाई के बाद भी इनका जीवन कष्टो से भरा रहा.इसी बीच इनकी नौकरी अध्यापक के पद पर एक स्कूल में लगी. अध्यापक पद के कुछ समय बाद इनका पदोन्नति हुआ और इनको सब इंस्पेक्टर बना दिया गया. उन्होंने यहाँ पर कई पत्रिकाओं संपादन भी किया,जिनमे इनकी प्रमुख पत्रिका हंस थी.
इनकी जितनी भी कहानिया उर्दू में है उनमें इन्होंने अपना नाम नवाब राय लिखा था. जब उनका एक संग्रह सोजे वतन जब्त किया गया तब इनको अपना नाम नवाबराय छोड़ना पड़ा.इन्होंने हिंदी में प्रेमचंद्र के नाम से सामाजिक कहानियो की रचना की, और वो जल्द ही एक कथाकार के रूप में फेमस हो गये. इनकी हिंदी पत्र-पत्रिकाओं ने उनकी रचनाओं को ज्यादा महत्त्व दिया.
प्रेमचंद्र जी की भाषा शैली
इनकी भाषा एक दम सरल,रोचक,प्रबाहपूर्ण, तथा प्रभावपूर्ण और सटीक थी , जो हमारे मन पर गहरा असर छोड़ती है.इनकी कहानियो मानव प्रकृति,मानव इतिहास तथा मानवीयता के हिर्दयस्पर्शी तथा कलापूर्ण चित्रो से भरा हुआ है.इनकी कहानी – रचना का मुख्य भाग मानव ही है. जिन्होंने भाषा-शैली के क्षेत्र में उदार एवं ब्यापक दृश्टिकोण को ही अपनाया है.इनकी भाषा में व्यवहारिकता तथा साहित्यिकता एकदम साफ झलकता है.
प्रेमचंद्र जी की रचनाएँ
प्रेमचंद्र जी ने कई सारी रचनाएँ है ,जिनमे से कुछ कहानी-संग्रह है तो कुछ उपान्यास और नाटक.
इनके द्वारा लिखित कुछ कहानी संग्राह इस प्रकार है-
- नवनिधि
- सप्त सरोज
- प्रेम पूर्णिमा
- लालफीता
- बड़े घर की बेटी
- प्रेम पचीसी
- नमक का दारोगा
- प्रेम द्वादसी
- प्रेम तीर्थ
- प्रेम-प्रसून
- प्रेम-प्रतिज्ञा
- प्रेम-पंचमी
- समर यात्रा
- नव जीवन
- पंच-प्रसून
- प्रेम प्रमोद
इनका कुछ प्रसिद्ध उपन्यास इस प्रकार है-
- प्रेमाश्रम
- निर्मला
- सेवासदन
- रंगभूमि
- गबन।
- गोदान
- कायाकल्प
- कर्मभूमि।
प्रेमचंद्र जी के कुछ प्रमुख नाटक
- कर्बला
- प्रेम की बेंदी
- संग्राम
इसके अलावा प्रेमचंद्र जी ने जीवनी,निबंध,संपादन,अनुवाद तथा बालोपयोगी साहित्य में भी इनका विशेष योगदान रहा.
स्वर्गवास
सन 1936 सितंबर में अचानक से मुंशी प्रेमचंद जी की तबियत खराब हो गयी. तबियत खराब के चलते 8 अक्टूबर सन 1936 को हिंदी तथा उर्दू के महान लेखक इस दुनिया को छोड़ कर चले गये.