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मौर्य साम्राज्य या Maury Vansh ka itihas (322 ई०पू०-185 ई०पू०)
Maury Vansh ka itihas- क्या आपने कभी सोचा है कि आज कल के सिक्कों पर ,बड़े -बड़े सरकारी ऑफिस में पीठ से पीठ सटाये चार शेर बैठे रहते,आखिर वो कहा से लिया गया,तो में आपको बता दू की यह शेर महान सम्राट अशोक के सारनाथ स्तम्भ से लिया गया है।अशोक मौर्य वंश का राजा था।
मौर्य साम्राज्य की शुरुआत
बौद्धस्रोतो के अनुसार एक बार नन्द वंश के राजा ने चाणक्य यानि कौटिल्य का अपमान कर दिया था। कुछ वक्त बाद कौटिल्य बालक चंद्रगुप्त को राजकिलकम नामक खेल खेलते हुए देखा। चाणक्य ने चंद्रगुप्त में तेज़ प्रतिभा को देखा और उनको अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद चाणक्य ,चंद्रगुप्त को अपने तक्षशिला ले गये। जहाँ पर इन्होंने चंद्रगुप्त को अलग-अलग कलाओं की शिक्षा दी।
चाणक्य की कूटनीति और रणकौसल की सहायता से चंद्रगुप्त ने घननंद को पराजित कर दिया ,जो की नंदवंश का अंतिम शासक था। चंद्रगुप्त ने घननंद को पराजित करने के बाद 322 ई०पू० मगध में मौर्य वंश की स्थापना की।
सेल्युकस जो की यूनान का सेनापति था उसने 305 ई०पू० में पश्चिम भारत पर आक्रमण किया, जिसे मौर्य वंश के सम्राट चंद्रगुप्त ने परास्त कर दिया।
युद्ध में परास्त होने के बाद सेल्युकस को मजबूरी में सम्राट चंद्रगुप्त से सन्धि करनी पड़ी, जिससे छंदरगुप्त को हिंदुकुश पर्वत तक के प्रांत उपहार के रूप में मिले। इस प्रकार चंद्रगुप्त ने भारत में प्रथम बार एक केंद्रीय शासन के अंतर्गत विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
मौर्य प्रशासन
चाणक्य के अर्थशात्र तथा मेगस्थनीज़ की इण्डिका मौर्य वंश के विशाल प्रशासन की जानकारी मिलती है।
मगध का पूरा अधिकार चंद्रगुप्त के हाथों में था। राजा की सहायता तथा राजा को सलाह देने के लिए एक मंत्रिमंडल को बनाया गया। चाणक्य को मंत्रिमंडल का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया ।
इतने बड़े साम्राज्य को चलाने के लिए, साम्राज्य को तीन स्तरों पर किया गया -प्रान्त,जनपद तथा नगर/गांव।
साम्राज्य को चलाने की जिम्मेदारी राजा के बाद मंत्रिपरिषद,तथा मंत्रिपरिषद के बाद राज्यपाल,स्थानिक तरह गांव के मुखिया का था।
मौर्य प्रशासन की विशेषताएं
- पूरे साम्राज्य की सूचना गुप्तचर ही राजा को देता था।
- इस समय नौकरशाही की व्यवस्था थी,तथा नौकरो को उनका वेतन राजा के राजकोष से दिया जाता था।
- राजा खुद ही प्रान्त से लेकर नगर या गाँवो तक समय-समय पर दौरा करते थे।
- इतना बड़ा साम्राज्य चलने के लिए हमेशा धन की आवश्यकता पड़ती थी,जिसके लिये राजा की नीति हमेशा राजकोष के खजाने को भरने की थी।
- साम्राज्य में कृषिकर,व्यवसायी संगठनो पर बिक्रीकर तथा अन्य तरह के कर आय के मुख्य स्रोत थे ,जिनको बहुत ही सावधानी से इकट्ठा किया जाता था।
- इनके साम्राज्य में लोग सभ्य थे। कोई भी अपने घरों में ताला नहीं लगता था।
- मगध साम्राज्य का क्षेत्रफल 9 मील लंबा तथा 1.5 चौड़ा था।
- इनके साम्राज्य के लोग कभी भी झूठी गवाही नहीं देते थे। तथा पाटिलपुत्र से लेकर तक्षशिला तक सड़को के दोनों ओर कुँए तथा छायादार बृक्ष जगह-जगह पर लगे रहते थे।
सम्राट अशोक की आखिरी लड़ाई कब हुई?
सम्राट चंद्रगुप्त के बाद उनका बेटा बिंदुसार मगध की गद्दी पर बैठा। बिंदुसार के बाद बिंदुसार का बेटा अशोक मगध का सम्राट बना। सम्राट चंद्रगुप्त ने जो साम्राज्य स्थापित किया था, उसमे से कलिंग स्वतंत्र हो गया था, जो की सम्राट अशोक के लिए बड़ी चुनौती थी-कलिंग पर विजय. इसके बाद सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर दिया ,जिसके परिणाम स्वरुप लगभग एक लाख लोग मारे गये तथा डेढ़ लाख लोग बंदी बनाये गये।
यह सब देख कर सम्राट अशोक का मन विचलित हो गया। सम्राट अशोक शांति ढूढ़ने में लग गए। अशोक ने प्रण लिया की आज के बाद कोई भी युद्ध नहीं लड़ेंगे। इसके बाद सम्राट अशोक में काफी परिवर्तन आया,उन्होंने लोगो की खुसी के लिये, लोगो की भलाई करना शुरू कर दिया। उन्होंने काफी विश्राम गृह तथा मरीजो के लिए अस्पताल बनवाये। अशोक ने अपने राज्य में कई जगहों पर स्तम्भ भी बनवाये,जिनमे चार सिंहो वाला स्तम्भ भी एक है।
अशोक का धर्म सन्देश
सम्राट अशोक ने जगह-जगह पर अपने सन्देश को खुदवाये। इनके कुछ सन्देश इस प्रकार है-
- “हर किस्म के लोगो पर युद्ध का बुरा प्रभाव पड़ता है।इससे मै बहुत दुखी हूं. कलिंग से युद्ध के बाद मैंने मन लगाकर धर्म का पालन किया है और दूसरों को यही सिखाया है”.
- मै मानता हूँ कि धर्म धर्म से जीतना युद्ध से जीतने से बेहतर है। मैं यह बातें खुदवा रहा हूँ ताकि मेरे पौत्र भी युद्ध करने की न सोचें और धर्म फ़ैलाने की सोंचे”.
- “लोग तरह -तरह के अवसरों पर तरह-तरह के संस्कार करते है.”
- “यहाँ किसी भी जीव को मारा नहीं जायेगा और उसकी बलि भी नहीं चढ़ाई नहीं जाएगी.”
- सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को अपने सन्देश के प्रचार के लिए श्रीलंका भेज दिया था.
अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में एकरूपता लाने के लिए पाटिल पुत्र में एक बड़ा सभा भी किया था जिसको तीसरी बौद्ध संगीत सभा भी कहते है. - पीठ से पीठ सटा कर बैठे चार सिंह हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है। विश्व के इतिहास में सम्राट अशोक के जैसा मानवतावादी व् उदार आज तक नहीं हुआ है.
मौर्य साम्राज्य का अंत
सम्राट अशोक के बाद धीरे-धीरे इनके साम्राज्य का पतन हो गया,क्योंकि वंशानुगत साम्राज्य तभी तक बने रहते है जब तक उस साम्राज्य को चलने वाला योग्य शासक हो। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया।