मलिक मुहम्मद जायसी जी का जीवन परिचय(सन 1492-1542 ई०)

मलिक मुहम्मद जायसी जी भक्तिकालीन धारा की प्रेममार्गी शाखा के कवि थे. ये मुस्लिम थे फिर भी हिन्दुओ की कहानियो को, हिन्दुओ की भाषाओं में पूरे दिल के साथ कहते थे.संत कबीर दास जी ने  केवल भिन्न प्रतीत होती हुई सत्ता का आभास दिया था,लेकिन मालिक मुहम्मद जायसी जी ने प्रत्यक्ष जीवन की एकता को पूरा किया.
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जायसी जी के जन्म के बारे में अनेक मतभेद है. इनकी रचनाओं के अनुसार इनका जन्म सन 1492 के लगभग रायबरेली जिले के जायस नामक स्थान पर हुआ था.क्योंकि उन्होंने खुद कहा है-“जायस नगर मोर अस्थानु” ,जायस  में रहने के कारण ही ये जायसी कहलाये.इनके पिता का नाम मालिक राजे अशरफ बताया जाता है.मलिक मुहम्मद जायसी जी का केवल नाम मुहम्मद था. मालिक इनको अपने वंशो की परंपराओं के अनुसार ही लगाना पड़ा था.
 जब ये छोटे से थे तभी इनके माता-पिता का देहांत हो गया था ,जिससे इनका बचपन दुःख से भरा था। माता-पिता के स्वर्गवास हो जाने के कारण इनकी पढाई का उचित प्रबंध न हो सका.जब ये केवल 7 साल के थे तभी इनको चेचक बीमारी हो गया जिसकी वजह से इनका एक कान तथा एक आंख ख़राब हो गया। ये देखने में एक दम काले और भद्दे थे.जब बादशाह शेरशाह ने इनको देखा तो शेरशाह हँसने लगे और इनका मजाक उड़ाया. तब मलिक मुहम्मद ने कहा ‘मोहिका हँसेसि, कि कोहरहिं?’ ,जिससे शेरशाह बहुत ही लज्जित हुये.

साहित्यिक परिचय:

मलिक मुहम्मद जायसी भक्ति और प्रेम ही अपना विश्वास रखते थे,और इन्होंने इन चीज़ो पर जोर भी दिया. इनका सम्बन्ध एक कृषि परिवार से होने के कारण ये भी खेतो में जाते थे. माता-पिता के मृत्यु के बाद इनका आर्थिक जीवन ख़राब हो चुका था.इनके चार दोस्त भी थे जो इनके बहुत ही करीबी थे. जिनका नाम-सालार कादिम, बड़े शेख, यसुफ मालिक ,सलोने मिया ,था.
 मलिक जी रहस्यवादी कवी भी यही जिनकी रहस्यवाद की सबसे बड़ी विशेषता उनका प्रेम के प्रति भावना है. इसका प्रमाण आपको पदमावत में देखने को मिल जाता है,क्योंकि इन्होंने पदमावत में  राजा रत्नसेन को जीव तथा पदमावती को परमात्मा माना है. यही सूफियों की पद्धति है। जिन्होंने साधात्मक रहस्यवाद का भी चित्रण किया है. अगर हम बात करे भावात्मक प्रकृति मूलक रहस्यवाद की  तो जायसी जैसा कबीर दास जी में भी देखने को नहीं मिलता है.

भाषा-शैली:

मलिक मुहम्मद जायसी  जी की भाषा अवधी थी.जिनमे इन्होंने कलापक्ष को ही प्रधानता दिया है. इनके भाषा में अलंकार के साथ छंद भी आते है.इनकी शैली की बात करे तो इन्होंने मसनवी शैली का प्रयोग किया है.

रचनाएँ-

मालिक मुहम्मद जायसी जी ने बहुत सारी रचनाएँ की है जो इस प्रकार है-
  • पदमावत
  • अखिरी कलाम
  • चित्ररेखा
  • अखरावट
जिनमे इनकी सबसे बड़ी रचना पदमावत है. पदमावत में इन्होंने चित्तौड़ के राजा रत्नसेन तथा सिंघालद्वीप की राजकुमारी पदमावती की प्रेमकथा का सुन्दर तथा मनमोहक वर्णन किया है.आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार इस ग्रंथ का शुरुआत 1520 ई० में हुआ था तथा इसकी समाप्ति 1540 ई० में हुआ.
इनकी जो आखिरी कलाम है उनमे इन्होंने मनुष्य के मृत्यु के बाद की दशा का वर्णन किया है.
इन्होंने चित्र-रेखा में चंद्रपुर की राजकुमारी चित्ररेखा तथा कन्नौज के राजकुमार प्रीतम कुंवर के प्रेम की कहानी का सुन्दर वर्णन किया है.
अखरावट में इन्होंने वर्णमाला के एक ही अक्षर को पकड़ कर दर्शन तथा सिद्धान्त सम्बंधित बातों को अखरावट की चौपाइयों में कहा है.मालिक जी का विरह का वर्णन एक दम विषाद और मर्मस्पर्शी है. मुहम्मद जी के बिरह एवं संयोग का मार्मिक स्थल षड्यंत्र वर्णन और बारहमासा है.

स्वर्गवास:

अवधी भाषा के इस महान ज्ञाता का अमेठी में सन 1542 ई० में  स्वर्गवास हो गया और इस मोहमाया भरी संसार को छोड़ कर हमेशा के लिए चले गये.