माखनलाल चतुर्वेदी जीवन परिचय (सन 1889 -1968 )

माखनलाल चतुर्वेदी एक महान लेखक,कवि के साथ एक वरिष्ठ साहित्यकार भी थे। इन्होंने अपनी ख्याति एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी बनायीं। माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म 4 अप्रैल सन 1889 को मध्यप्रदेश के होसंगाबाद जिले के बवाई नामक एक छोटे से गांव में हुआ था।

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माखन लाल चतुर्वेदी

इनके पिता का नाम पंडित नन्दलाल चतुर्वेदी था, जो एक अध्यापक थे।माखनलाल चतुर्वेदी एक गरीब परिवार से थे जिसकी वजह से इनका बचपन काफी गरीबी तथा दुःख से भरा रहा। लेकिन इतना परेशानी सहने के बाद भी ये अपने जीवन में कभी हार नहीं माने।

इन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ कई आंदोलन किये जिसकी वजह से इनको कई बार जेल भी जाना पड़ा। ये हिंसा से काफी दूर रहते थे । गांधी के द्वारा बताये गए मार्गो पर हमेशा चलते थे। ये अहिंसा के पालन करने वाले थे। इनके द्वारा लिखित रचनाओं में भी देश के प्रति प्रेम साफ-साफ झलकती है।

शैक्षिक जीवन:

माखन लाल जी की शुरुआती शिक्षा उनके ही गांव में हुयी थी। इन्होंने घर पर ही स्वयं ही अध्ययन करके अंग्रेजी,गुजराती, बंगला,संस्कृत आदि भाषाओं पर ज्ञान अर्जित किया। जब ये मात्र 17 (सन 1906) साल के थे तभी ये एक स्कूल में अध्यपक के रूप में कार्य करने लगे। अघ्यापक के रूप में इन्होंने 4 साल(सन 1910) तक कार्य किया।

 

साहित्यिक जीवन:

माखन लाल चतुर्वेदी जी सन 1910 में अध्यापक का  कार्य छोड़ कर पत्र-पत्रिकाओं के संपादन में लग गये।जहा पर इन्होंने कर्मबीर तथा प्रभा नामक राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया। सन 1913 में इन्होंने प्रभा नामक पत्रिका का संपादन किया था। सन 1916 में माखनलाल जी लखनऊ के अधिबेशन के दौरान विद्यार्थियों के साथ महात्मा गांधी तथा मैथली शरण गुप्त जी से भी मुलाकात किये।

जब महात्मा गांधी जी ने अहसहयोग आंदोलन सन 1920 में प्रारम्भ किया तब महाकौशल से पहली बार जिनकी गिरफ़्तारी हुयी थी वो माखन लाल चतुर्वेदी जी ही थे। सन 1930 के दौरान जब सविनय अवज्ञा आंदोलन हुआ तब भी माखन लाल जी को गिरफ्तार कर लिया गया था।

माखन लाल जी में देश के प्रति बहुत ही प्रेम था, जिसकी वजह से ही इनको कई बार जेल का सामना करना पड़ा था। ये हमेशा ही अंग्रेजो के खिलाफ खड़े रहे।

 

माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ:

माखन लाल जी की रचनाओं में देश प्रेम एकदम साफ झलकता है। इन्होंने अपनी जीवन में बहुत सी रचनाएँ की जो इस प्रकार है-

  1. युगचरण
  2. हिमकिरिटीनी
  3. बेणु लो गूंजे धरा
  4. समर्पण
  5. बंधन सुख
  6. संतोष(स्मृतियां)
  7. साहित्य के देवता(नाटक )
  8. कृष्णार्जुन युद्ध
  9. मरण ज्वार
  10. माता
  11. बीजुरी काजल आज रही
  12. समय के पांव
  13. अमीर इरादे-गरीब इरादे
  14. हिमतिरंगनी
  15. लड्डू ले लो
  16. कैदी और कोकिला
  17. गिरी पर चढ़ते धीरे-धीरे
  18. सिपाही
  19. वरदान या अभिशाप
  20. जवानी
  21. तुम मिले
  22. मुझे रोने दो
  23. तुम एक हो
  24. कुञ्ज कुटिरे यमुना तीरे
  25. मैं अपने से डरती हूँ सखी
  26. वायु
  27. अमर राष्ट्र
  28. बदरिया थम-थमकर झर री
  29. झूला-झूले री
  30. सिपाही
  31. घर मेरा है
  32. यौवन का पागलपन
  33. बलि पंथी से
  34. उपालम्भ
  35. दूबो के दरबार
  36. चलो छिया-छी हो अंतर में
  37. उषा के संग,पहिन अरुणिमा
  38. मधुर मधुर कुछ गा दो मालिक
  39. भाई,छेड़ो नहीं मुझे
  40. यह किसका मन डोला
  41. तुम मंद चलो
  42. जागना अपराध
  43. तुम्हारा चित्र
  44. तान की मदोड
  45. ये अनाज की पूले तेरे कंधे झूले
  46. गंगा की विदाई
  47. प्यारे भारत देश
  48. ये वृक्षो में उगे परिंदे
  49. उठ महान
  50. बोला तो किसके लिए मैं
  51. किरणों की शाला बंद हो गई चुप-चुप
  52. गाली में गरिमा घोल-घोल
  53. इस तरह ढक्कन लगाया रात न
  54. वर्षा ने आज विदाई ली
  55. साँस के प्रश्न चिन्हों,लिखी स्वर कथा
  56. जीवन,यह मौलिक महामानी
  57. मधुरा बादल, और बादल
  58. जाड़े की साँझ
  59. फुंकारण कर,रे समय के सांप
  60. नयी नयी कोपले
  61. ये प्रकाश ने फैलाये है
  62. क्या आकाश उतर आया है
  63. आज नयन के बंगले में
  64. यह अमर निशानी किसकी है
  65. समय के समर्थ अश्व

भाषा- शैली:

माखन लाल जी की भाषा ब्यवहारिक खड़ी बोली है। इनकी भाषा सरल,स्पष्ट तथा ओज से भरी है। इनकी भाषाओं में हिंदी के साथ उर्दू तथा फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है, जिनमें अलग तरह की सरलता और मिठास है। इनकी शब्दो में देश के प्रति प्यार एक दम साफ रूप से दिखाई देती है। अगर शैली की बात करू तो, गति शैली के साथ विचारात्मक तथा भावात्मक शैली देखने को मिलती है।

 

पुरस्कार:

माखन लाल जी को हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार देव पुरस्कार सन 1943 में हिमकिरीटनी के लिए दिया गया। इसके 11 साल बाद सन 1954 में हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार की स्थापना होने के बाद इनको हिमरंगिनी के लिए हिंदी साहित्य का प्रथम अवार्ड ‘दादा ‘को दिया गया। इसके एक साल बाद इनको हिमतिरिंगनी के लिए सन 1955 में हिंदी साहित्य के अकादमी अवार्ड से नवाजा गया।

माखनलाल जी को सन 1959 पुष्प की अभिलाषा तथा अमर राष्ट्र जैसी महान रचनाओं के लिये सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट्. की उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने इन्हें सन 1963 में  पदमभूषण सम्मान से सम्मानित किया।मध्यप्रदेश के भोपाल में स्थित माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय इन्ही के नाम पर स्थापित किया गया।

 

स्वर्गवास:

30 जनवरी सन 1968 को हिंदी साहित्य के महान रचनाकार इस मोहमय से भरी संसार को छोड़ कर हमेशा के लिए चले गये। इनकी द्वारा लिखी गयी रचनाएँ आज भी हमें इनकी याद दिलाती है।