राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय (सन1893-1963)

राहुल सांकृत्यायन एक महान पंडित के साथ हिंदी यात्रा साहित्य के जनक भी थे. राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल सन 1893 ई० को रविवार के दिन अपने ननिहाल पंडित रामशरण पाठक के यहाँ  पंदहा  नामक ग्राम में हुआ था,जो आजमगढ़ जिले के अंतर्गत आता है. इनका पैतृक गांव कनैला था.

 

Biography Of Rahul Sankrityayan राहुल सांकृत्यायन जी का जीवन परिचय rahul sankrityayan jivan parichay in hindi janm tatha mrityu
Rahul Sankrityayan Jivan Parichay

 

 

इनका बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था. संकृत्या इनका गोत्र था। इनके पिता का नाम गोबर्धनब पाण्डेय था. राहुल जी के चार भाई और एक बहन थी जिसमे राहुल जी सबसे बड़े थे. राहुल जी की बौद्ध धर्म में आस्था थी ,इसलिए इन्होंने अपना नाम केदारनाथ से बदल कर भगवान गौतम बुद्ध के पुत्र के नाम पर रख लिया.

इनका “सांकृत्या” गोत्र होने के कारण ही ये सांकृत्यायन कहलाये. इनके नाना पंडित रामशरण पाठक सेना में सिपाही थे ,जिसके चलते इनके नाना दक्षिण भारत की बहुत यात्राएं किये थे. जिनके नाना अपने बीते वर्षो की कहानी बालक केदारनाथ को सुनाते थे. और इसी के चलते इनके मन में यात्रा के प्रति काफी उत्सुकता भर गयी.

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राहुल सांकृत्यायन की शिक्षा:

राहुल जी की प्रारंभिक शिक्षा इनके पैतृक गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर रानी की सराय की पाठशाला में हुआ था. जहाँ पर इन्होंने कक्षा 3 की किताब (मौलवी इस्माइल की उर्दू की चौथी किताब) को पढ़ी थी. जिसमे एक शेर इस प्रकार लिखा था-

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ?
जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ?

इस शेर के सन्देश ने इनके मन  बहुत ही गहरा प्रभाव डाला। और इनके अन्दर देश-विदेश घूमने की इच्छा जगी। रानी की सराय में शिक्षा पूरा होने के बाद ये निजामाबाद अपनी शिक्षा के लिए गए जहाँ पर इन्होंने सन 1907 ई० में उर्दू से मिडिल पास किया। इसके बाद इन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा वाराणसी से प्राप्त किया। इसके बाद इन्होंने अपनी पढाई रोक दी,पर इनके पिता की इच्छा थी की ये आगे भी पढ़े। इनको पढाई और घर का बंधन अच्छा न लगा ।ये देश-विदेश घूमना चाहते थे।

राहुल सांकृत्यायन साहित्यिक परिचय:

राहुल जी घूमने-फिरने के बहुत ही शौक़ीन थे. इनका विदेश यात्रा का सिलसिला 1923 से ही शुरू हो गया था. इन्होंने पांच-पांच बार तिब्बत,श्रीलंका तथा सोवियत संघ की यात्रा की.इन्होंने अपना 6 महीना यूरोप में ही ब्यतीत किया था. सजे आलावा इन्होंने कोरिया,ईरान ,अफगानिस्तान,जापान,नेपाल,मंचुरिया जैसे देशो की भी यात्राएँ की थी। और भारत में इन्होंने लगभग हर जगह की यात्राएं की थी. इनका अध्यन जितना विशाल था,उतना ही विशाल इनका साहित्य-सृजन था. ये कुल 36 यूरोपीय तथा एशिया के भाषाओं के ज्ञाता थे

इन्होंने 150 ग्रंथो का पणयन किया जिससे राष्ट्रभाषा के योगदान में विशेष महत्वपूर्ण योगदान दिया. राहुल जी कर्मयोगी योद्धा थे,इन्होंने बिहार के किसान आन्दोलन में भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाई. जिससे उनको सन 1940 में आंदोलन के कारण एक वर्ष के लिए जेल भी जाना पड़ा. सन 1947 के दौरान अखिल भारतीय सम्मेलन में अध्यक्ष के रूप में  उन्होंने पहले से छपे भाषण को कहने से इंकार कर दिया ,जिससे उनको पार्टियों की सदस्यता से हटा दिया गया. फिर उनको 1953-1954 के दौरान उसी पार्टी का सदस्य बनाया गया.

राहुल सांकृत्यायन की भाषा-शैली:

राहुल जी ने अपनी भाषा में संस्कृतनिष्ठ लेकिन सरल भाषाओं का ही प्रयोग किया है.ये संस्कृत के प्रकांड विद्द्वान थे फिर भी ये जनसाधारण भाषा को लिखने के ही पक्ष में थे। इनकी भाषा-शैली में कोई बनावट या साहित्य-रचना का प्रयास नहीं किया गया है. इनकी शैली का रूप विषय और परिस्थितियों के अनुसार बदलता है. इन्होंने वर्णानात्मक,व्यंगात्मक,विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है.

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राहुल सांकृत्यायन की रचनाएँ-

इनकी रचनाएँ इस प्रकार है-

  • तिब्बत यात्रा
  • लंका
  • ईरान और रूस में पचीस मास
  • बोल्गा से गंगा (कहानी-संग्राह)
  • मेरी जीवन यात्रा (आत्मकथा)
  • दर्शन-दिग्दर्शन (दर्शन)
  • विश्व की रुपरेखा (विज्ञान)
  • शाशन शब्दकोष
  • राष्ट्रभाषा कोष
  • तिब्बती हिंदी कोष
  •  जय यौधेय (उपन्यास)

इनका लेख, अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा इनकी पुस्तक घुमक्कड़ शास्त्र से लिया गया है.

राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार:

राहुल जी को सन 1958 में साहित्य-अकादमी अवार्ड ने सम्मानित किया गया. इसके बाद भारत सरकार ने सन 1963 में इन्हें पदमभूषण पुरस्कार से नवाजा.

राहुल सांकृत्यायन की मृत्यु:

हमारे देश के महान पंडित ,हिंदी यात्रा साहित्य के जनक  14 अप्रैल सन 1963 ई० को इस संसार को छोड़ कर हमेशा के लिए चले गये.