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 महाकवि कालिदास का जीवन परिचय

कालिदास  संस्कृत के महान विद्वान तथा एक सफल नाटककार थे। इन्होने भारत के पौराणिक कथाओं तथा अपनी दूरदर्शी सोच और कल्याणकारी विचारो को ही अपने रचनाओं में दर्शाया है। ये भारत के महान कवियों में से एक थे। जिनके जन्म के बारे में कोई पुख्ता सबूत न मिलने के कारण इनका जन्म 150 ई०पू० से 450 ई०पू० के बीच माना जाता है।

महाकवि कालिदास का जीवन परिचय Kalidas Ka jivan Parichay In Hindi kalidas rachnaye
Kalidas Jivan Parichay

 

 

अगर इनकी जन्म की बात करू तो इनके जन्म के बारे में विद्यवानो में काफी मतभेद है। कोई इनका जन्म उत्तर प्रदेश बताता है,तो कोई बिहार, तो कोई अन्य प्रदेश को इनका जन्म स्थान मानता है। कालिदास जी के मेघदूतम में उज्जैन के प्रति ज्यादा लगाव को देखते हुए इनका जन्म कुछ लोग उज्जैन को मानते है।

कुछ साहित्यकारों ने भी यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि महाकवि कालिदास का जन्म उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा नामक ग्राम में हुआ था। कालिदास जी ने अपने नाटक मालविकाग्निमित्रम में द्वितीय शंगु शाशक अग्निमित्र को नायक बनाया है। राजा अग्निमित्र 170 ई०पू० में शासन किया था, जिससे इनके जन्म के बारे में यह पता चलता है कि इनका जन्म 170ई०पू० से पहले हुआ था।

बाणभट्ट ने भी अपनी रचना हर्षचरित्रम में महान कवि कालिदास का उल्लेख किया है,बाणभट्ट की यह रचना 600 ई०पू हुयी थी जिससे यह तय होता है कि कालिदास का जन्म 100 ई०पु० से 600 ई०पु० के मध्य हुआ था। 100 ई०पू० से 600 ई०पू० के बीच इनका जन्म कब हुआ था किसी को भी मालूम नहीं। कुछ इतिहास के जानकार इनका नाता चतुर्थी शताब्दी से जोड़ते है। चतुर्थी शताब्दी में गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य तथा उनके उत्तराधिकारी कुमार गुप्त थे।

 

वैवाहिक जीवन :

कालिदास को उनकी प्रारंभिक जीवन में सभी लोग मुर्ख मानते थे। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा नामक राजकुमारी ने प्रण लिया था कि जो विद्वान उनको अपनी विद्या से पराजित कर देगा ,वो उसी विद्वान से विवाह करेंगी। कई विद्वान विद्योत्तमा से विवाह करना चाहते थे,लेकिन वे विद्योत्तमा के विद्या के आगे तनिक भी टिक न सके। जिससे विद्द्वानो ने अपना अपमान समझकर ये प्रतिज्ञा किया कि विद्योत्तमा का विवाह सबसे मुर्ख आदमी से करवाएंगे।

सभी विद्वान मुर्ख आदमी की तलाश में निकल गये। चलते-चलते रास्ते में उनको एक आदमी दिखाई दिया।वह आदमी जिस वृक्ष की डाल पर बैठा था उसी डाल को काट रहा था। विद्यवानो ने सोचा इससे बड़ा मुर्ख  प्राणी इस पूरे संसार में नहीं मिलेगा। विद्यवानो ने कालिदास को शादी का लोभ देकर पेड़ से नीचे उतारा और कहा-तुम मौन धारण कर लो और जो हम कहेंगे वही करना।

विद्यवानो ने कालिदास का भेष-भूषा को बदला तथा राजकुमारी के समक्ष यह कहकर पेश किया कि ये हमारे गुरु है ,जो आप को अपनी विद्या का पराक्रम दिखाना चाहते है, लेकिन आज हमारे गुरु ने मौन व्रत को धारण किया है, इसलिए ये अपने हाथों के संकेत से अपने उत्तर देंगे। अपने गुरु के संकेतों को समझकर हम आपको उत्तर देंगे।

विद्योत्तमा ने अपनी प्रथम प्रश्न में एक ऊँगली ऊपर उठाई जिसका मतलब था कि ब्रम्ह एक है। लेकिन कालिदास ने समझा की ये मेरी एक आँख फोड़ने को कह रही है,इसलिए कालिदास ने अपनी दो ऊँगली को ऊपर कर दिया, जिसका मतलब था कि मैं तुम्हारी दोनों आँखे फोड़ दूंगा। लेकिन विद्यवानो ने कालिदास के दोनों ऊँगली उठाने का मतलब बताया कि ब्रह्म एक है लेकिन एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे जगत की सहायता लेनी होती है। अकेला ब्रहम स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता है।

राजकुमारी ने अपना दूसरा प्रश्न पूछा जिसमे उन्होंने अपना पूरा हाथ खुला दिखाया ,जिसका मतलब था कि तत्व पांच होते है। खुला हाथ देखकर कालिदास को लगा की यह मुझे थप्पड़ मारने के लिए कह रही है। जिसके जवाब में कालिदास ने अपना मूठा बांध लिया,कालिदास का मतलब था कि अगर तू मुझे थप्पड़ मारेगी तो मैं तुझे घुसे से मारूँगा। लेकिन विद्यवानो ने बंद मुट्ठी का मतलब बताया कि भले ही तत्व पांच हो लेकिन सभी तत्वों से मिलकर एक मनुष्य के शरीर का निर्माण होता है।

इस प्रकार विद्योत्तमा प्रश्नों के उत्तर पाने पर कालिदास से हार गयी। विद्योत्तमा ने अपनी प्रण के हिसाब से कालिदास से विवाह कर लिया।

 

 

विवाह  के पश्चात

 

विद्योत्तमा से विवाह के बाद कालिदास विद्योत्तमा को लेकर अपनी झोपड़ी में आ जाते है। शादी की प्रथम रात को दोनों जब एक साथ थे तभी कालिदास को ऊंट का आवाज सुनाई दिया।विद्योत्तमा संस्कृत में पूछती है”किमेतत” लेकिन कालिदास एक अनपढ़ थे इसलिए उनके मुंह से निकल गया “ऊट्र”। जिससे विद्योत्तमा को पता चल जाता है कि कालिदास अनपढ़ है।

विद्योत्तमा ने कालिदास को फटकार कर कहा कि जब तक तुम एक बड़े विद्वान नहीं हो जाते तब तक घर मत आना। इसके बाद कालिदास विद्या प्राप्ति के लिये निकल पड़े। इन्होंने कालीदेवी की आराधना किया और माँ काली के आशीर्बाद से ये एक बड़े विद्वान बन गये। कुछ वर्षों के बाद ये वापस अपने घर आये ,और घर का दरवाजा खटखटाया और कहा -कपाटम उदघाट्य सुन्दरि!

यह सुनकर विद्योत्तमा ने चकित हो कर कहा-अस्ति कश्चिद् वाग्विशेष:। विद्योत्तमा ने दरवाजा खोला और सामने कालिदास को पाया जिससे वह अतिप्रसन्न हुई।विद्योत्तमा ने कालिदास के साथ किये दुर्व्यहार के लिए माफी मांगती है। कालिदास जी कहते कि हे  विद्योत्तमा अगर तुमने मुझे वह फटकार न लगायी होती तो आज मै विद्वान कभी नहीं बन पाता। और इस तरह कालिदास ने विद्योत्तमा को अपना पथप्रदर्शक गुरु मान लिया था।

 

कालिदास की रचनाएँ:

कालिदास ने कुल मिलाकर लगभग 40 रचनाएँ की हैं।लेकिन इनमें से ज्यादातर रचनाएँ विवादित है, इन विवादित रचनाओं को अलग-अलग विद्यवानो ने कालिदास द्वारा लिखित रचना बताने का प्रयास किया है। जिनमे से मात्र सात इनकी ऐसी रचना है जो विवादों से परे है।

 

 इनके द्वारा रचित नाटक इस प्रकार है-

1.अभिज्ञानशाकुंतलम (राजा दुष्यन्त और शकुन्तला की कहानी)।
2.मालविकाग्निमित्रम (राजा अग्निमित्र और मालविका की कहानी)।
3.विक्रमोवर्शियम (पुरुरवा और अप्सरा उर्बशी की कहानी)।

इनके द्वारा रचित महाकाब्य इस प्रकार है-

1.कुमारसंभवंम: (रघुवंश के राजाओं की गाथाएं, शिव-पार्वती विवाह तथा कार्तिकेय के जन्म का वर्णन)।
2.रघुवंशम(रघुकुल के राजाओं का वर्णन)

इनके द्वारा रचित खंडकाव्य इस प्रकार है-

1.ऋतुसंहार (प्रकृति के सभी ऋतुओं का विस्तार से वर्णन)
2.मेघदूतम(यक्ष तथा उसके प्रिय की कहानी)

अभिज्ञानशाकुंतलम की विशेषता:

अभिज्ञानशाकुंतलम कालिदास की दूसरी रचना है। अभिज्ञानशाकुंतलम ने ही कालिदास को संसार में प्रसिद्ध किया। इसमें महाराज दुष्यंत की कहानी का वर्णन किया गया है। इस कहानी में राजा दुष्यंत को शकुन्तला से प्यार हो जाता है। शकुन्तला के पिता ऋषि विश्वामित्र थे। शकुन्तला और राजा दुष्यन्त जंगल में ही विवाह कर लेते है। विवाह के पश्चात् राजा दुष्यन्त अपने राज्य वापस चले आते है।

दुर्वाशा ऋषि को यह जानकर अच्छा न लगा और उन्होंने शकुन्तला को श्राप दे दिया कि जिसके लिए तुमने ऋषियों का अपमान किया है,वह तुम्हे भूल जायेगा। ऋषि के श्राप देने के बाद शकुन्तला ने दुर्वाशा ऋषि से माफ़ी मांगी जिससे ऋषि ने श्राप के उपाय बताये। ऋषि ने कहा यदि तुम राजा दुष्यन्त को उनके द्वारा दी गयी अंगूठी को दिखाती हो, तो राजा को सब कुछ याद आ जायेगा।

शकुन्तला अंगूठी दिखाने के लिए राजधानी के लिए निकल पड़ती है। रास्ते में ही शकुन्तला को पता चला की वह गर्भवती है। कुछ दूर और चलने के बाद अंगूठी कही खो जाती है, जिससे शकुन्तला एक दम भयभीत हो जाती है। राजा के दरबार में पहुचने के बाद शकुन्तला ने राजा से अपनाने के लिए कही,लेकिन राजा ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया। वह अंगूठी एक मच्छवारा पाया था,मछुवारे ने अंगूठी राजा को लाकर दिया।अंगूठी देखकर राजा को सब कुछ याद आ गया,और उन्होंने शकुन्तला को अपना लिया।

 

स्वर्गवास:

महाकवि कालिदास के मृत्यु के बारे में कोई प्रमाण न मिलने की वजह से ,इनके मृत्यु के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।