कबीर दास का जीवन परिचय (1398-1518)

कबीर दास जी 14वीं व् 15वीं सदी के भक्ति काल के ज्ञानाश्रयी शाखा के  महान संत,कबि तथा समाजसुधारक थे। कबीरदास जी ने अपना पूरा जीवन समाज में फैली बुराइयों को ख़त्म करने में लगा दिया। उन्होंने समाज में फैली छुआछूत ,हिन्दू-मुस्लिम जातिवादी में फैली बुराइयों को काफी हद तक दूर किया। कबीर दास जी के जन्म के बारे में कफी मतभेद है। कबीरदास जी का जन्म  1398 ई० में काशी के लहरताला तालाब के पास हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म के बारे में कहा जाता है कि एक विधवा महिला के गर्भ से पैदा होने के कारण वह महिला उन्हें लोक-लाज के डर से तालाब के किनारे छोड़ आयी।

कबीर दास का जीवन परिचय Biography Of Kabir Das in hindi sant kabir das jeevni
Sant Kabir Dass

कबीरदास को लहरताला तालाब से नीरू तथा नीमा नामक जुलाहा  दम्पति ने अपने घर लाया तथा उनका पालन पोषण किया। इनके माता -पिता की  आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण इनकी पढाई-लिखाई न हो सकी। इनका खेल-कूद में भी मन नहीं लगता था।
इनका विवाह लोई से हुआ। शादी के बाद इनको एक बेटी तथा एक बेटे की प्राप्ति हुई। इनके बेटी का नाम कमाली तथा बेटे का नाम कमाल था। इन्होंने कभी किसी भी दोहे को लिखा नहीं है,क्योंकि ये पढ़ना और लिखना नहीं जानते थे। ये जो अपने मुंह से दोहा कहते थे इनके शिष्य उस दोहे को लिखते थे।

कबीर दास जी की शिक्षा-दीक्षा

कबीरदास जी को एक अच्छे गुरु की तलाश थी,और वो वैष्णो संत आचार्य रामानंद को अपना गुरु बनाना चाहते थे, लेकिन रामानंद जी ने जुलाहे के पुत्र होने के कारण कबीर को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया। कबीरदास जी ने अपने मन में ठान लिया कि वह रामानंद जी को ही अपना गुरु बनाएंगे।
कबीरदास जी को मालूम था कि रामानंद जी रोज प्रातःकाल गंगा जी में स्नान करने के लिए जाते हैं, एक दिन सुबह कबीरदास जी रामानंद जी से पहले ही गंगा घाट पर पहुँच गये, और वहाँ की सीढियो पर लेट गये। जब रामानंद जी स्नान करने गंगाघाट पर आये और सीढ़ियों से उतरने लगे तभी इनका पैर कबीरदास जी के ऊपर पड़ गया। पैर कबीर के ऊपर पड़ने से रामनन्द जी के मुख से राम निकल गया,इसी राम के नाम का मन्त्र को कबीरदास जी ने ग्रहण किया तथा रामानंद जी भी कबीर को अपना शिष्य बनाने से  इनकार न कर सके।

“काशी में प्रगट भये  रामानंद चेताये”

कबीरदास जी के पास  बहुत शिष्य हो गए थे जिससे इनके घर पर ढेर सारे शिष्यों और संतो का जमावड़ा हमेशा रहता था। कबीरदास जी के घर पर ज्ञानरूपी गंगा बहती थी।

“पोथी पढ़ पढ़ जगमुआ पंडित भया न कोय “

“ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय”

बड़े -बड़े लोग जो सभी प्रकार की किताबें पढ़ कर पंडित न बन पाये, और कबीरदास जी जो कुछ भी पढ़े लिखे नहीं थे,कबीरदास जी केवल प्रेम की भाषा जानते फिर भी कबीरदास जी एक पंडित (विद्वान) के तरह ही थे।

साहित्यिक परिचय

कबीरदास जी 15वीं सदी के युग प्रवर्तक भी माने जाते है। कबीरदास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। कबीरदास जी राम की अवधारणा को अलग और ब्यापक स्वरुप देना चाहते थे। कबीर के राम निर्गुण तथा सगुण से परे है। कबीरदास जी को शांतिमय जीवन अच्छा लगता था।
कबीरदास जी हिंसा,छुआ-छूत, जाति-वादी के भेद भाव के हमेशा विरोधी रहे है। ये अहिंसा,सदाचार तथा सत्य के प्रशंसक थे। अपनी सरल स्वाभाव तथा संत प्रवृति के होने के कारण,कबीर जी का आज विदेशो में भी सम्मान है।

कबीरदास जी की रचनाएं

कबीरदास जी की रचनाओं की संग्रह को बीजक नाम दिया गया है। जिनमे साखी, सबद और रमैनी है।

साखी:

साखी में कबीरदास जी के शिक्षाओं तथा उनके सिद्धांतो के बारे में बताया गया है। साखी में व्यवहारिक ज्ञान ,पाखंडवाद, गुरुवचन, तथा कर्मकांड, का भी उल्लेख मिलता है। इनमे कही-कही पर सोरठा छंद का भी प्रयोग किया गया है।

सबद:

सबद का प्रयोग हिंदी के संत साहित्य में बहुलता से हुआ है। इसमें गुरु की शिक्षा,बाण, निर्भयबानी,परमात्मा,तथा शब्दब्रह्म का भी उल्लेख मिलता है।

रमैनी:

रमैनी के द्वारा कबीर ने हिन्दू तथा मुस्लिम एकता के लिए समान रूप से शिक्षा दी है। और अपने विचारों को समाज के सामने रखा है। रमैनी में कुल चौरासी पद है,जिनमे 14 लाख योनियों का वर्णन मिलता है। रमैनी में चौपाई छंद का भी प्रयोग मिलता है।

कबीरदास जी का स्वर्गवास

उस समय ज्यादातर लोगो का मानना था कि यदि कोई ब्यक्ति काशी में मरे तो उसे स्वर्ग तथा जो ब्यक्ति मगहर में मारेगा उसे नर्क मिलेगा। इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए कबीर दास जी मगहर चले गए। और मगहर में ही वो सन 1518 ई० में माघ शुक्ल एकादसी के दिन इस संसार को छोड़ कर चले गये।
मुस्लिम तथा हिन्दू दोनों कबीर जी को बहुत प्यार करते थे, इसलिए उनके शव को मुस्लिम दफनाना चाहते थे तथा हिंदू उनके शव को जलना चाहते थे।लेकिन जब दोनों ने कबीर जी के शव से चादर हटाया तो उन्हें मात्र कुछ फूल मिले। उन लोगों ने फूल को आपस में बाँट लिया तथा अपने रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया।