सरदार पूर्णसिंह का जीवन परिचय(सन 1881-1931)
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Sardar Puransingh |
सरदार पूर्णसिंह द्विवेदी युग के हिंदी के महान निबंधकार थे। निबंधकार के साथ-साथ ये एक वैज्ञानिक ,अध्यापक और लेखक भी थे। सरदार पूर्णसिंह का जन्म सीमा प्रान्त के एबटाबाद जिले के एक गाँव(सलहद) में 17 फरवरी सन 1881 में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार करतार सिंह भागर था,जो की एक सरकारी कर्मचारी थे। तथा इनकी माता एक गृहणी थी।
सरदार पूर्णसिंह बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे। ये अपने माता -पिता के सबसे बड़े बेटे थे।
इनकी शिक्षा
इनकी प्रारंभिक शिक्षा तहसील हवेलियों में हुई थी। जहाँ पर इन्होंने उर्दू तथा गुरुमुखी सीखी। सन 1897 में इन्होंने हाइस्कूल की परीक्षा रावलपिंडी के मिशन स्कूल से पास किया। इसके बाद ये लाहौर चले गये। लाहौर के डी.ए. वी. कॉलेज से इन्होंने एफ. ए. की परीक्षा को पास किया।
इसके बाद ये रसायन के अध्ययन के लिए इम्पीरियल यूनिवरसिटी टोक्यो,जापान चले गये। जहा पर इन्होंने 3 साल तक अध्ययन किया। जापान में विश्व धर्म महासभा के दौरान इनकी भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई। रामतीर्थ जी से भेंट होने के बाद ये उनसे बहुत प्रभावित हुये तथा उन्ही के साथ भारत लौट आये।
साहित्यिक परिचय
स्वामी रामतीर्थ जी की मृत्यु के बाद इन्होंने गृहस्थ जीवन जीना शुरू कर दिया। इसके बाद इनको देहरादून के इम्पीरियल फारेस्ट इंस्टिट्यूट में अघ्यापक के पद की नौकरी मिल गयी जहा पर इनका पगार 700 रुपये महीने था। स्वतंत्र प्रवृति के होने के कारण ये ज्यादा समय नौकरी नहीं कर सके, जिससे इन्होंने त्यागपत्र दे कर ग्वालियर चले गये।
ग्वालियर में इन्होंने स्वामी रामतीर्थ की जीवनी तथा सिक्खों के दस गुरुओ की जीवनी लिखी। इनका ग्वालियर में भी मन नहीं लग रहा था। इसके बाद ये पंजाब आकार में खेती करने लगे। लेकिन खेती में भी इनका काफी ज्यादा नुकसान हुआ, जिससे इनको काफी ज्यादा आर्थिक संकटो जे जूझना पड़ा।इसके बाद ये नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे।
क्रांतिकारियों से सम्बन्ध होने के कारण, इनको देहली षड्यंत मुक़दमे के लिए अमीरचंद के साथ इनको भी पूछताछ के लिए बुलाया गया। अमीरचंद से इन्होंने अपना कोई सम्बन्ध न होने की बात कही। तथा इनको छोड़ दिया गया। प्राणों की रक्षा के लिए इन्होंने झूठा बयान दिया था। ये अमीरचंद को जानते थे , क्योंकि अमीरचंद स्वामी रामतीर्थ का परम भक्त और गुरुभाई भी था। इसी घटना के बाद इनके मन पर बुरा प्रभाव पड़ा,और ये अंदर ही अंदर पश्चाताप की आग में जलते रहे। जिसके कारण ये आगे का जीवन अच्छे से नहीं जी सके।
रचनाएँ
सरदार पूर्णसिंह की रचनाएँ विचारात्मक के साथ भावात्मक भी होते थे।
सरदार पूर्णसिंह की भाषा शुद्ध खड़ी बोली थी। उद्धरण बहुलता और प्रसंग-गर्भत्व इनकी निबंध शैली की विशेषता है। इनके विचार भावुकता में हमेशा लिपटे हुए होते है।
सरदार पूर्णसिंह के हिंदी में कुल 6 निबंध है जो इस प्रकार है
1.आचरण की सभ्यता
2.मजदूरी और
3.सच्ची बीरता
4.अमेरिका का मस्त योगी वाल्ट हिटमैन
5.पवित्रता
6.कन्यादान
इनकी सबसे अधिक रचनाएँ इंग्लिश में है। देहरादून में अनुसंधान शाला कार्यकाल के दौरान इन्होंनेअंगेगी में वैज्ञानिक विषयो से सम्बंधित बहुत से शोधपूर्ण लेख लिखे थे। उनकी प्रकाशित लेखों की संख्या 50 से ऊपर है।
इनकी अंग्रेजी में कुछ लेख इस प्रकार है-
1.एट हिज फ़ीट।
2.सिस्टर ऑफ़ द स्पिननिंग व्हील।
3.शार्ट स्टोरीज।
4.द स्टोरी ऑफ़ स्वामी राम।
5.थे स्केचेज़ फ्रॉम द सिख।
6.द लाइफ एन्ड टीचिंग ऑफ़ श्री गुरु तेग बहादुर।
इनके कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार है-
1.अविचल जोत।
2.खुले मैदान।
3.चुप प्रीतदा।
4.खुले लेख।
स्वर्गवास
सरदार पूर्णसिंह सन 1930 को बीमार पड़ गये। इनकी दिन प्रतिदिन इनकी स्थिति बिगड़ती गयी, और अंत में बीमारी से जूझते हुए इन्होंने 31 मार्च सन 1931 में, इस संसार को छोड़ कर चले गये।