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रामबृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय (1902-1968)
रामबृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म सन 1902 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक एक छोटे से गांव में हुआ था. इनका सम्बन्ध एक कृषि परिवार से था. इनके पिता का नाम फूलवंत सिंह था, जो एक साधारण से किसान थे.
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Ramvriksh Venipuri |
जब ये बालक ही थे तभीइनके माता तथा पिता का देहान्त हो गया था. माता-पिता के देहांत के बाद इनका पालन -पोषण इनकी मौसी ने किया. इनकी प्रारंभिक शिक्षा बेनीपुर गांव में ही हुआ.इसके बाद इनकी पढाई मामा के गांव पर हुईं.जब से पंद्रह साल के ही थे , तभी से ये पत्र-पत्रिकाओं को लिखने लगे थे.
रामबृक्ष बेनीपुरी साहित्यिक परिचय
सन 1920 में रामबृक्ष जी ने मैट्रिक परीक्षा को पास करने से पहले ही गांधी जी के साथ असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े. इसके बाद इन्होंने देश सेवा के लिए बहुत कार्य किये. क्रन्तिकारी होने के कारण इनको अनेक बर्षो तक जेल का सामना करना पड़ा. ये जब जेल में थे तब भी ये शांत नहीं रहते थे. जेल में भी इन्होंने कई रचनाओं को लिखा जो बहुत ही भड़काने वाली थी.
इन्होंने अपना ज्यादातर रचनाएँ जेल में ही लिखा है. ये राष्ट्र सेवा के साथ-साथ साहित्य की भी सेवा करते रहे. इनके दिल में राष्ट्र के प्रति बहुत ही ज्यादा प्यार था,जिसकी वजह से ये जीवन भर चैन से न रह सके. इन्होंने सन 1930 में पतितो के देश में नमक उपन्यास को प्रकाशित किया जो जेल के समय के अनुभव के आधार पर था.
सन 1946 में हमारे देश के क्रन्तिकारी देशभक्तो ने अंग्रेजो को भारत से भागने पर विवश कर दिया. इसी बीच सभी क्रांतिकारी, राजनेतिक को जेल से रिहा किया गया जिनमे रामबृक्ष जी भी थे. बेनीपुरी जी की इच्छा थी की उनके जितने भी साहित्य है ,सबको बेनीपुर ग्रंथावाली नाम से दस खंडों में प्रकाशित कराये,लेकिन इनमें से कुछ खंड ही प्रकाशित हो सके.
माटी की मूरत इनकी श्रेष्ठ रेखाचित्रों का संग्रह है. जिसमे इन्होंने बिहार के जनजीवन को समझने की कोशिश की है. बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा वाले लेखक थे.पत्रकारिता से ही इनकी साहित्य -साधना की शुरुआत हुई. देशभक्ति और साहित्य साधना ही इनका प्रिय विषय हमेशा से रहा है.
रामबृक्ष बेनीपुरी की शिक्षा
इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके ही गांव बेनीपुर में हुई. इसके बाद आगे की पढाई के लिए ये अपने ननिहाल चले गये. ननिहाल में पढाई पूरा करने के बाद इन्होंने अपना दाखिला मैट्रिक में लिया, जहाँ पर इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास करने से पहले ही गांधी जी के साथ अहसहयोग आंदोलन में कूद पड़े.फिर बाद में इन्होंने साहित्य सम्मेलन से “विशारद” की परीक्षा पास किया.
रामबृक्ष बेनीपुरी की भाषा-शैली
बेनीपुरी जी की भाषा में ओज है. इनकी भाषा खड़ीबोली थी जिसमे कुछ आंचलिक शब्द भी आ जाते थे.लेकिन इन शब्दो से उनके भाषा के प्रवाह में कोई दिक्कत उपस्थित नही होता है. ये भाषा के जादूगर भी माने जाते है. इनकी भाषा में अंग्रेजी,संस्कृत तथा उर्दू के प्रसिद्ध शब्दो का प्रयोग हुआ है. इनकी रचनाओं में अलग-अलग शैलियां भी देखने को मिलती है, जैसे- डायरी शैली,चित्रोपम शैली,नाटकीय शैली इत्यादि.
रामबृक्ष बेनीपुरी की रचनाएँ
रामबृक्ष जी ने उपन्यास,नाटक,कहानी,संस्मरण,निबंध,यात्रावृतान्त, ललित लेख तथा रेखाचित्र जैसे गद्य विधाओं अपनी कलम को चलाई है. इनका गेंहू और गुलाब नामक ग्रन्थ का पहला निबंध “गेंहू बनाम गुलाब “है. इसमें इन्होंने गेंहू को आर्थिक और राजनीतिक प्रगति का स्रोत माना है तथा गुलाब को सांस्कृतिक प्रगति का स्रोत माना है.
इनके द्वारा लिखित निबंध इस प्रकार है-
- गेंहू बनाम गुलाब
- बन्दे बाणी विनायकौ
- मशाल।
रामवृक्ष जी ने अनेको पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जो इस प्रकार है-
- बालक
- युवक
- किसान-मित्र
- हिमालय
- नयी धारा
- चुन्नू-मुन्नू
- तरुण भारती
- जनता
- किसान-मित्र
- योगी।
इसके अलावा –
- नाटक -अंबपाली
- यात्रावृतान्त -पैरों में पंख बांधकर
- रेखाचित्र- माटी की मूरत,लालतारा
- उपन्यास-पतितो के देश में
स्वर्गवास
सन 1968 ई० को एक अच्छा देशभक्त उपन्यासकार,निबंधकार,तथा भाषा का जादूगर , इस संसार को छोड़ कर ईश्वर में हमेशा के लिए लीन हो गया.